अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Speech & Expression): Prerna Mishra - Lets Care Society
तोड़ वाणी की जंजीरे,
मुख से सच्चाई बोल दे,
कर हौसले को बुलंद अपनी
राज सारे खोल दे।
आजादी को हमें 73 वर्ष होने को है, क्या फिर भी हम सच में आजाद है? क्या आज हम हर मुद्दे पर खुलकर बात कर सकते हैं? समाज में कई सवाल है फिर भी ना जाने एक चुप्पी सी छुपी है। क्या आप वह चुप्पी तोडेंगे?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom Of Speech & Expression):
भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत लिखित और मौखिक रूप से अपने विचार प्रकट करने अथवा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का प्रावधान किया गया है।प्रेस/पत्रकारिता भी विचारों के प्रचार का एक साधन ही है इसलिये अनुच्छेद 19 में प्रेस की स्वतंत्रता भी सम्मिलित है।
आज देश आजाद है, हर व्यक्ति को अपने विचार अपने उद्देश्य रखने का पूरा हक हैं, ऐसे में सरकार ने लोकतंत्र में और ढील दे दी जिससे आम जनता सरकार के हर फैसले में अपनी सहभागिता निभा सके।
भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु और उदार समाज की गारंटी देता है. संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मनुष्य का एक सार्वभौमिक और प्राकृतिक अधिकार है और लोकतंत्र, सहिष्णुता में विश्वास रखने वालों का कहना है कि कोई भी राज्य और धर्म इस अधिकार को छीन नहीं सकता.
ऐसे में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाधान कम समस्या ज्यादा पैदा कर रही है, क्या ऐसे में सरकार को अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई सीमा निर्धारित करनी चाहिए?
आज की स्थिति को देखे तो आजादी के नाम पर कुछ भी बोल देने का चलन आम हो चला है, इसमें सोशल मीडिया की अहम भूमिका है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का तात्पर्य यह नहीं कि आप किसी और व्यक्ति की मानवता को ठेस पहुंचाए या उनसे ही आजादी की मांग करें जो आप को भरपेट रोटी देता हो, रहने को घर देता हो, और घूमने को गलियां।सभी सभ्य समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए,लेकिन यह स्वतंत्रता ' रचनात्मक आलोचना ' तक ही सीमित होनी चाहिए।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दो पक्ष हैं केवल एक पक्ष पर बात कर के मैं दूसरे पक्ष को बिल्कुल सही नहीं कह सकती। भारत में कहने को अभिव्यक्ति की आज़ादी है, परंतु यह आजादी तब कहा जाती जब कोई व्यक्ति सरकार की सच्चाई जाहिर करने लगता है,अर्णब गोस्वामी इसके ताज़ा उदहारण है जिस घटना से आज सभी परिचित होगे,बांग्लादेश की लेखिका तस्लीमा नसरीन को सभी जानते होगें और भी कई उदाहरण मिल जाएंगे ऐसे,क्या इन्हें अभिव्यक्ति की आजादी नहीं? क्यों कलाकारों पर प्रतिबंध लगाए जाते है? क्यों मूवीज़ को बैन किया जाता है?सरकार कोई नियम क्यों निर्धारित नहीं करती है?क्यों भारत में सच लिखने वाले लेखकों को मौत के घाट उतार दिया जाता है ऐसी घटनाओं पर सरकार कोई सख़्त कानून क्यों नहीं बनाती? क्यों मीडिया की बहसे सिर्फ हिन्दू मुस्लिम पर होती हैं?
धन्यवाद
प्रेरणा

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